अमेठी-रायबरेली में कांग्रेस दलबदलुओं के सहारे

आशुतोष मिश्र, अमेठी। रायबरेली व अमेठी में कांग्रेस की राह और कठिन हो गई है। एक तो उसके अपने स्थानीय नेता दूसरे दलों का हाथ थाम चुके हैं वहीं यहां से पार्टी ने ज्यादातर सीटों पर दलबदलुओं पर दांव लगाया है। लिहाजा, उसे दोहरी चुनौती से जूझना होगा। यहां की 10 सीटों को कांग्रेस का दुर्ग कहा जाता रहा है लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव से कांग्रेस की जमीन यहां दरकने लगी थी। वहीं 2019 में अमेठी से केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को हराकर एक नया रिकॉर्ड बनाया। अब अमेठी की सीटें कांग्रेस और भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है तो रायबरेली में भी पार्टी को नए सिरे से उतरना होगा। वर्ष 2017 में रायबरेली से कांग्रेस को दो विधायक मिले थे। रायबरेली सदर से बाहुबली अखिलेश सिंह की बेटी अदिति सिंह और हरचंदपुर से राकेश सिंह विधानसभा पहुंचे लेकिन अब वे भाजपा के पाले में है लिहाजा कांग्रेस यहां भी खाली हाथ ही है। यहां की हरचंदपुर सीट से सपा से आए सुरेन्द्र विक्रम सिंह को टिकट दिया गया है और सरेनी से भाजपा से आई सुधा द्विवेदी को टिकट दिया है। बछरावां सीट से सुशील पासी मैदान में हैं जिन्होंने आरके चौधरी का साथ छोड़ कर कांग्रेस का हाथ थामा है। भाजपा से नाराज होकर आए अतुल सिंह को ऊंचाहार सीट प्रत्याशी बनाया है। रायबरेली सदर से डा. मनीष सिंह चौहान को टिकट दिया है, जिनकी कोई राजनीतिक जमीन नहीं है तो सलोन से प्रत्याशी बने जिला पंचायत सदस्य अर्जुन पासी का विरोध वहां की जिला इकाई पहले ही कर चुकी है। वहीं अमेठी की चार सीटों में से दो सीटों पर 2017 में पार्टी दूसरे नंबर पर रही थी। जगदीशपुर से राधेश्याम व गौरीगंज से मो. नईम ने कड़ी टक्कर दी और दूसरे नंबर पर रहे लेकिन इस बार यहां से प्रत्याशी बदल दिए गए हैं। जगदीशपुर से राधेश्याम का टिकट काट कर विजय पासी पर दांव लगाया है। विजय पासी 2012 में सपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे और राधेश्याम से हार गए थे। वहीं गौरीगंज में दूसरे नंबर पर रहे नईम साइकिल पर सवार हैं और तिलोई से सपा के टिकट पर टक्कर देंगे। अमेठी से पिछला चुनाव लड़ी अमिता सिंह भी इस बार कमल के साथ हैं। लिहाजा, कांग्रेस के सामने इस बार दोहरी चुनौती है कि एक तो उसके पास दलबदलुओं पर भरोसा करने के अलावा कोई चारा नहीं। दूसरे, कांग्रेस छोड़ कर गए नेताओं का भी मैदान में सामना करना होगा। हालांकि अंदरखाने में इस पर चर्चा गर्म है कि कांग्रेस का गढ़ होने के बाद भी यहां दूसरे नंबर की लीडरशिप विकसित नहीं की गई और पार्टी को दलबदलुओं पर भरोसा करना पड़ रहा है। अब यहां की जनता को कांग्रेस के पाले में करने में लिए पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी व कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का ही सहारा है। हालांकि यहां के चुनाव प्रबंधन को लेकर भी पार्टी को अंसतोष का सामना करना पड़ेगा। इससे पहले प्रियंका गांधी सिर्फ अमेठी व रायबरेली का ही चुनाव प्रबंधन करती थीं तो वह लम्बा समय यहां देती थीं। नुक्कड़ सभाएं व जनसंपर्क कर जनता का हाल जानती थीं लेकिन उन पर पूरे यूपी का जिम्मा है।