नीलांबर ने आयोजित किया लिटरेरिया 2021

कोलकाता। ‘स्वप्न, प्रेम और त्रासदी’ को मुख्य थीम रखकर साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था नीलांबर ने अपना वार्षिकोत्सव ‘लिटरेरिया’ 16 से 18 दिसंबर 2021 के बीच कोलकाता में आयोजित किया। इस आयोजन में नीलांबर ने साहित्य-कला और जन के बीच एक सेतु की भूमिका अदा की। अनुकूल मंच प्रदान कर नीलांबर ने पुराने मंझे हुए साहित्यकारों-कलाकारों के सान्निध्य में नई प्रतिभाओं को अपनी क्षमता दिखाने का अवसर भी उपलब्ध करवाया। इसके साथ ही जनसाधारण को भी इस उत्सव से जोडऩे का काम किया। नीलांबर आधुनिक तकनीक की सहायता से साहित्य को साधारण जन तक पहुँचाने के लिए प्रयास करता आ रहा है। इसी प्रयास का जीवंत उदाहरण है इस बार का तीन दिवसीय लिटरेरिया।
इस तीन दिवसीय कार्यक्रम की शुरुआत हिंदी के वरिष्ठ साहित्यिक अशोक वाजपेयी, मराठी कवि विजय चोरमारे, इतिहासकार नवरस अफरीदी, युवा आलोचक आशुतोष भारद्वाज एवं नीलांबर के संरक्षक मृत्युंजय कुमार सिंह, अध्यक्ष यतीश कुमार और सचिव ऋतेश कुमार ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
ऋतेश कुमार ने अपने प्रतिवेदन कहा कि लिटरेरिया साहित्यप्रेमियों की आकांक्षाओं का प्रतिफलन है। लिटरेरिया अकादमिक-बौद्धिक वर्ग के साथ-साथ घर और रसोई में युक्त लोगों तक के लिए गंभीर साहित्य को पहुंचाने का मंच है। अध्यक्षीय भाषण में यतीश कुमार ने नीलाम्बर के अब तक के सफर पर चर्चा की। साथ ही नीलांबर के उद्देश्यों को सबके समक्ष रखा। संस्था के संरक्षक मृत्युंजय कुमार सिंह ने अपनी बात रखते हुए कहा कि जीवन छंदहीन हो सकता है पर लहू की गति और हृदय का स्पन्दन हमें रचनाशील बनाए रखता है। इस अवसर पर अशोक वाजपेयी द्वारा नीलांबर के ब्लॉग ‘सप्तपर्णी’ का उद्घाटन भी किया गया।
कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत प्रबुद्ध बनर्जी, शुद्धेंदु हलदर और मृत्युंजय कुमार सिंह द्वारा ‘मेघदूत’ की संगीतमय प्रस्तुति के साथ हुई। इस सत्र का संचालन संस्था की संस्कृति-सचिव और युवा कवयित्री ममता पांडेय ने किया। पहले दिन के सेमिनार सत्र में लिटरेरिया के थीम विषय ‘स्वप्न, प्रेम और त्रासदी’ पर बीज वक्तव्य देते हुए अशोक वाजपेयी ने कहा कि दुनिया को बेहतर बनाने का जो स्वप्न था वह इतिहास के हाशिए पर पड़ा है। हम अपने को बेहतर बनाने में लगे हैं। जिस टैक्नोलॉजी को हम सुविधा मानते हैं वही घृणा फैलाने का काम कर रही है। प्रेम मनुष्यता का अनिवार्य पक्ष है। जो प्रेम नहीं करता वह मनुष्य नहीं होगा। इतिहासकार नवरस जे. अफ्रीदी ने ‘इतिहास की त्रासदी उर्फ बासी भात में खुदा का साझा’ विषय पर बात रखते हुए कहा कि इतिहास लेखन पर प्रहार ही इतिहास की त्रासदी है। इतिहास का अध्ययन निष्पक्ष निर्णय लेने का है। युवा लेखक आशुतोष भारद्वाज ने ‘नयी सदी के आंगन में हाशिये का गीत’ विषय पर बोलते हुए कहा कि अक्सर हाशिये को केंद्र के संदर्भ में देखा जाता है, वह स्थितियां या समुदाय जो केंद्र द्वारा उपेक्षित एवं अलक्षित रहे हैं। इस मान्यता का प्रतिकार करते हुए उन्होंने कहा कि हाशिया भी एक केन्द्र है। किसी भी व्यवस्था में, भले वह राजनैतिक हो या सामाजिक, अनेक केंद्र होते हैं। प्रतिष्ठित मराठी साहित्यकार विजय चोरमारे ने ‘साहित्य में प्रजातंत्र : प्रजातंत्र में साहित्य’ विषय पर अपनी बात रखी और कहा कि जब हम अपने देश के बारे में सोचते हैं तो मन में एक सवाल आता है कि इस देश का प्रवक्ता कौन है? मेरा मानना है कि साहित्यकार ही प्रवक्ता है किन्तु उसे मंच मिलना चाहिए। साहित्य का लोकतंत्र असल लोकतंत्र से अलग नहीं है। प्रसिद्ध नारीवादी लेखिका निवेदिता मेनन वीडियो कॉफ्रेंसिंग से जुड़ते हुए ‘स्त्री मुक्ति का राग और मुक्त स्त्री की छवि’ विषय पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि आजादी शब्द मायने रखता है। हम केवल अतीत से ही मुक्ति नहीं चाहते बल्कि भविष्य में विचारों की आजादी भी चाहते हैं। आजाद औरत की जो कल्पना है वह ऐसी दुनिया की है , जहाँ हमेशा परिवर्तन होते हैं, बन्धन टूटते हैं। सुपरिचित लेखक यतींद्र मिश्र ने ‘हिंदी में सिनेमा : सिनेमा में हिंदी’ को वक्तव्य के मूल में रखते हुए कहा कि जिस तरह का हमारा समय काल होता है सिनेमा में उसी तरह का बदलाव आता है। सिनेमा हमारे समाज से सीखता है और समाज से सिनेमा भी प्रभावित होता है। इस दिन के सेमिनार सत्र का संचालन युवा आलोचक विनय मिश्र ने किया।
पहले दिन शाम को नीलांबर द्वारा निर्मित एवं ऋतेश कुमार द्वारा निर्देशित फिल्म ‘संवदिया’ का प्रीमियर किया गया। इस सत्र का संचालन रंगकर्मी कल्पना झा और कवयित्री निर्मला तोदी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन शैलेश गुप्ता ने किया।
लिटरेरिया 2021 का दूसरा दिन विभिन्न कार्यक्रमों के साथ संपन्न हुआ। शुरुआत चर्चित गायक एवं संगीतकार कवीश सेठ के गीत और संगीत की जुगलबंदी से हुई। इस दिन का प्रथम संवाद सत्र यशपाल के उपन्यास ‘झूठा सच’ पर केंद्रित था। इसमें शामिल वक्ताओं में प्रियंकर पालीवाल ने अपनी बात रखते हुए कहा कि त्रासदियों से कोई हमें बचा सकता है तो वह है स्वप्न देखने वाला आदमी। स्वप्न वह है जो हम सामूहिक देखते हैं। वह जो अपने को बदलता है। विषय को आगे बढ़ाते गीता दूबे ने कहा कि झूठा सच में लेखक का अपना देखा हुआ यथार्थ है । इस उपन्यास के माध्यम से देश के पटल पर सबसे बड़ी त्रासदी को उद्घाटित किया गया है। आशीष मिश्र ने कहा कि हम लगातार एक के बाद एक त्रासदी देख रहे हैं। आपदा और त्रासदी में अवसर उठाना देख रहे हैं। समाज में जो एक की त्रासदी है वह दूसरे की त्रासदी नहीं है। डॉ. रीता चौधरी ने इस सत्र का संचालन किया। दूसरे संवाद सत्र में धर्मवीर भारती के काव्य नाटक ‘अंधा युग’ पर चर्चा करते हुए सुशील सुमन ने कहा कि झूठ और सत्य के बीच अगर हम सत्य को अनदेखा करेंगे तो यह त्रासदी है। विवेक सिंह ने कहा कि गरीब कमजोर व्यक्ति के स्वप्न में ताकत होती है। क्रान्ति में उथल पुथल होती है इसका नायक पहले से तय नहीं होता है। बसन्त त्रिपाठी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि धर्मवीर भारती आजादी के बाद देश निर्माण के संधि काल की बड़ी त्रासदी पर बात करते हैं। इस सत्र का संचालन रंगकर्मी ऋतेश कुमार ने किया। दूसरे दिन कविता पर्व-1 में नरेंद्र पुंडरीक, श्रीप्रकाश शुक्ल, सुतपा सेनगुप्ता, सुशीला पुरी, प्रदीप सैनी, अरुणाभ सौरभ, जोशना बनर्जी आडवाणी और अणु शक्ति सिंह जैसे वरिष्ठ और युवा कवियों ने भागीदारी कीढ्ढ इस कविता सत्र का संचालन संस्था की उपसचिव स्मिता गोयल ने किया। दिन के अंत में नीलांबर की टीम द्वारा संजीव की कहानी पर आधारित नाटक ‘झूठी है तेतरी दादी की कहानी’ का मंचन किया गया। नाटक का निर्देशन ऋतेश कुमार ने किया। इस दिन के उद्घाटन सत्र एवं समापन सत्र का संचालन क्रमश: द्वारिका प्रसाद उनियाल एवं युवा कवि निशांत ने किया। आयोजन के अंतर्गत भावधारा संस्था के सहयोग से ओपन माइक सेशन रखा गया था, जिसमें विभिन्न युवा रचनाकारों ने अपनी रचनाओं की प्रस्तुति की। इसका संचालन हंसराज और चयनिका ने किया। धन्यवाद ज्ञापन आशा पांडेय ने किया।
तीसरे दिन का शुभारंभ ‘बांग्ला डॉट कॉम’ की टीम द्वारा बाउल गीतों की प्रस्तुति के साथ हुआ। लिटरेरिया का तीसरा संवाद सत्र मन्नू भंडारी के उपन्यास ‘महाभोज’ पर केंद्रित रहा। इस विषय पर बोलते हुए डॉ. आशुतोष ने महाभोज में व्यक्त राजनीति को वर्तमान परिपेक्ष्य से जोड़ कर देखा। उन्होंने बौद्धिकों के बीच बढ़ती रीढ़विहीनता पर चिंता व्यक्त की। डॉ. इतु सिंह ने कहा कि महाभोज हमें वर्तमान का सत्य बताता हुआ दिखाई देता है। राहुल सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि प्रेम के जिस रूप को देखने के हम अभ्यस्त हैं, महाभोज में प्रेम का वह रूप दिखाई नहीं पड़ता है। महाभोज स्वप्न के दु:स्वप्न में बदलने की कथा है। इस सत्र का संचालन डॉ. दिनेश राय ने किया। चौथा संवाद सत्र उदय प्रकाश की लम्बी कहानी ‘मोहनदास’ पर केंद्रित था। इस संवाद सत्र में युवा आलोचक और आलोचना पत्रिका के संपादक संजीव कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि मोहनदास कहानी की सबसे बड़ी ताकत यह है कि वह अपने पाठकों को त्रासदी का अनुभव कराती है। यहाँ सपने बार-बार टूटते हैं पर प्रेम मोहनदास को त्रासदी से बार-बार उबारने का काम करता है। कथाकार राकेश बिहारी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि लेखक मोहनदास नहीं बन पाया है। उसने अपने सामाजिक बोध को पात्र के ऊपर थोपने का काम किया है। युवा आलोचक विनय मिश्र ने कहा कि मोहनदास कूट कथाओं का पुंज है। मोहनदास और बिसनाथ हम सभी के भीतर एक साथ मौजूद हैं। प्रियंका साह ने अपने वक्तव्य में कहा कि मोहन दास के साथ यह उन लोगों की भी कहानी है जो उसकी तरह ही संघर्ष करते हैं। सत्र का संचालन आशीष मिश्र ने किया। इस दिन आयोजित कविता पर्व के दूसरे सत्र में आर. चेतनक्रांति, कृष्ण मोहन झा, विजय चोरमारे, लीना मल्होत्रा, वंदना टेटे, पीयूष दईया, कविता कादंबरी और अंकिता शाम्भवी ने शिरकत किया। इस कविता सत्र का संचालन संस्था के उपसचिव आनंद गुप्ता ने किया।
इस दिन समापन सत्र के पहले हिस्से में नीलांबर टीम द्वारा दुष्यंत कुमार, राजकमल चौधरी, रघुवीर सहाय और नरेश सक्सेना की कविताओं पर आधारित कोलाज की प्रस्तुति की गई। कोलाज में स्मिता गोयल, पूनम सोनछात्रा, रचना सरन, सुधा तिवारी और चयनिका दत्ता शामिल रहे। इस सत्र के दूसरे हिस्से में प्राची गोंडचवर और ममता शर्मा द्वारा काव्य संगीत की प्रस्तुति की गई। इस सत्र का संचालन अनिला राखेचा ने किया। अंत में मराठी लेखक महेश एलकुंचवार के विनय शर्मा द्वारा निर्देशित नाटक ‘आत्मकथा’ का मंचन किया गया। इसमें कुलभूषण खरबंदा, चेतना जालान, अनुभा फतेहपुरिया एवं कल्पना झा ने मुख्य भूमिका निभाई।
नीलाम्बर द्वारा सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्य के लिए दिया जाने वाला ‘निनाद सम्मान’ 2021 के लिए स्वर्गीय अपराजिता शर्मा को एवं रंगकर्म के लिए ‘रवि दवे स्मृति सम्मान’ चेतना जालान को दिया गया। इस अवसर पर चेतना जालान ने कहा कि निर्देशक अभिनेता के आंतरिक कला को निखारता है, संवारता है। कलाकार सिर्फ बाह्य शरीर लेकर थिएटर में जाता है, आंतरिक बुनावट निर्देशक का ही होता है। अपराजिता शर्मा की ओर से पुरस्कार ग्रहण करते हुए प्रभाकर लाल कर्ण ने कहा कि हमें अपराजिता के काम को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना होगा एवं हिमोजी कला को विस्तार देना होगा। सत्र का संचालन क्रमश: ममता पांडेय एवं कल्पना झा ने किया। पूरे कार्यक्रम के लिए धन्यवाद ज्ञापन मृत्युंजय कुमार सिंह ने दिया।
लिटरेरिया 2021 की परिकल्पना में प्रियंकर पालीवाल, आशीष मिश्र एवं अविनाश मिश्र ने विशेष सहयोग किया। आलोचना एवं संवाद सत्र का संयोजन ममता पांडेय एवं योगेश तिवारी और कविता सत्र का संयोजन निर्मला तोदी एवं आनंद गुप्ता ने किया। पूरे कार्यक्रम के संयोजन में मृत्युंजय कुमार सिंह, यतीश कुमार, ऋतेश कुमार और मनोज झा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तकनीकी सहयोग विशाल पांडेय और अभिषेक पांडेय ने किया। छायांकन में हंस राज और भरत ने योगदान दिया। पूनम सिंह, स्मिता गोयल, विमलेश त्रिपाठी, नीलू पांडेय, अनिला राखेचा, शैलेश गुप्ता, आशा पांडेय, ऋतु तिवारी, दीपक ठाकुर, रौनक अफरोज, रेवा टिबरेवाल, रचना सरन, जान्वी अग्रवाल, पूजा पाठक, गुलनाज, मौसमी प्रसाद और आशीष कुमार साव ने स्वागत एवं मंच के पीछे की जिम्मेदारी को संभाला। कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए भारी संख्या में साहित्यप्रेमी कोलकाता एवं देश के विभिन्न हिस्सों से मौजूद रहे।