बिजनेस डेस्क। देश में तेल की कीमतें लगातार आसमान छू रही हैं। कई राज्यों ने कर कम करके कुछ राहत भी दी है। ऐसे में अगर केन्द्र सरकार द्वारा जीएसटी लगा दिया जाता है तो आखिर तेल के दाम में कितना अंतर आयेगा अब यही सवाल सबके मन में है। पेट्रोल की खुदरा कीमत में 60 फीसद हिस्सेदारी केंद्रीय और राज्य करों की है। डीजल के मामले में यह 56 फीसद तक है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में कुछ स्थानों पर पेट्रोल 100 रुपये प्रति लीटर को पार कर गया है, जबकि देश में अन्य स्थानों पर भी इनके दाम अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर चल रहे हैं। राहत की बात है कि पिछले 12 दिनों से पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ाए गए हैं, लेकिन यह राहत कब तक जारी रहेगी। कच्चेतेल का भाव आसमान छू रहे हैं। आज नहीं तो कल पेट्रोल-डीजल और एलपीजी के दाम बढ़ाने ही पड़ेंगे। लोगों को पेट्रोल-डीजल की महंगाई से राहत दिलाने के लिए दो ही रास्ते हैं पहला केंद्र और राज्य सरकार अपना टैक्स कम रहे या फिर दूसरा रास्ता है पेट्रोलियम पदार्थों का जीएसटी के दायरे में लाया जाय। केंद्र सरकार पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम करने पर विचार कर रही है। अगर पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के सुझावों पर अगर जीएसटी परिषद अमल करती है तो देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें आधी हो जाएगी। कुछ दिन पहले उन्होंने कहा था कि उनका मंत्रालय जीएसटी परिषद से पेट्रोलियम उत्पादों को अपने दायरे में शामिल करने का लगातार अनुरोध कर रहा है, क्योंकि इससे लोगों को फायदा होगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी कुछ ऐसे ही संकेत दे चुकी हैं। यही नहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का भी मानना है कि पेट्रोल-डीजल अगर जीएसटी के दायरे में आते हैं तो लोगों को राहत मिलेगी। पेट्रोल को अगर माल एवं सेवाकर (जीएसटी) के दायरे में लाया जाता है तो इसका खुदरा भाव इस समय भी कम होकर 75 रुपये प्रति लीटर तक आ सकता है। एसबीआई इकोनोमिस्ट ने एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में यह बात कही। रिपोर्ट में कहा गया है कि पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने से केन्द्र और राज्यों के राजस्व पर एक लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा जो देश की जीडीपी का 0.4 फीसदी होगा। अर्थशास्त्रियों ने कच्चे तेल की कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल और डॉलर का मूल्य 73 रुपये प्रति डॉलर के आधार पर यह आकलन किया है।