डॉ. अजय कुमार मिश्रा। प्यार का सप्ताह चल रहा है आपके चाहने या न चाहने पर भी इसका एहसास आज हम सभी को आधुनिक बाजार और युवा पीढ़ी दिला रहे है। हम अपनी सभ्यता संस्कृति की खूबियाँ और व्यावहारिक सहयोगात्मक स्वरुप को जिस तेजी से भूलते चले जा रहें है उसी तेज गति से हम पाश्चात्य संस्कृति को अपनातें भी चले जा रहें है । जीवन के नैतिक मूल्यों पर टिके रहने के बजाय अब हम क्षणिक रूप में खुशियाँ तलाश कर रहें है । हमारी संस्कृति और सभ्यता की अनेकों खास बातें रही है, पर विगत कई दशकों से एक अप्रत्याशित बात सामने आयी है और इसमें तेजी से वृद्धि भी दिखने लगी है की विश्व में सर्वाधिक विदेशी संस्कृति/कल्चर/व्यवहार को हमने अपनाया है । नतीजे भी सामने आ रहें है जहाँ सम्बन्धो में विच्छेद और अनहोनी घटना भी दिख रही है । फिर भी हम एक ही दिशा में बिना रुके, बिना थके, भाग रहे है आखिर हम किन सुकून या खुशियों की तलाश कर रहें है हमें स्वयं को भी नहीं पता !
प्यार के सप्ताह का महत्वपूर्ण दिन आज है जिसे हम वेलेंटाइन्स डे के नाम से जानते है कभी यह शब्द अपने देश के लिए अबूझ पहेली हुआ करता था पर आज छोटे – छोटे बच्चे भी इसके बारें में जानते है। युवा पीढ़ी का बड़ा वर्ग अपने जीवन के उद्देश्यों को भूलकर ऐसे समय में इसमें लिप्त है जिस समय उसे अपने विकास की मजबूत नीव रखने का कार्य करना चाहिये । थोडा सा आकलन करते है हम आप जिस उम्र में प्यार की परिभाषा को समझना शुरू करते थे उस उम्र तक आने के पहले ही आज अनेकों युवा इसमें पड़ कर अपने जीवन चक्र को समाप्त कर दे रहे है या अन्धकार के रास्ते पर चले जातें है । आखिर इन सब के पीछे दोष किसका है, परवरिश का समाज का, बाजार का या फिर वैश्वीकरण का ?
भारत दुनियां भर के लिए एक बड़ा बाजार है जहाँ सभी क्षेत्रों में विदेशी बड़ी कम्पनियाँ बड़े अवसर के रूप में देखती है ऐसे में यह स्वाभाविक है की लोगो के व्यवहार और आवश्यकताओं में परिवर्तन विभिन्न माध्यमों से किया जाये । स्मार्ट फ़ोन और इन्टरनेट की गति जिस तेजी से बढ़ रही है उसी तेजी से युवाओं में बुराइया, पाश्चात्य संस्कृति के प्रति लगाव बढ़ता जा रहा है । ल्कि बड़े लोगों की भी मोबाइल और इन्टरनेट की वजह से तेजी से क्षीण हो रही है । ऐसे में स्वस्थ, समृद्ध और विचारवान समाज की कल्पना करना दिन में ख्वाब देखने जैसा है । महिला अपराध, बाल अपराध, वित्तीय अपराध के पीछे कई कारणों में से एक बड़ा कारण यह भी है । कई दफे आपने समाचार पत्रों में जरुर पढ़ा होगा की चोरी में पकड़ा गया अपराधी चोरी के पीछे प्रेमिका को महंगे गिफ्ट देना कारण बताता है । हालाँकि सभी विषयों में यह राय लागु नहीं होता पर अधिकांश में ना भी नहीं किया जा सकता ।
आखिर प्यार और इसकी आत्मीयता में युवा ऐसे समय में कैसे प्रवेश कर जा रहा जहाँ उसका लक्ष्य कुछ विशेष होना चाहिये । आप स्वयं गहरायी से आकलन करेगें तो इसमें टीवी चैनलों का योगदान, मोबाइल इन्टरनेट का योगदान दिखेगा पर विगत कुछ समय से वेबसीरिज ने युवाओं को गुमराह तेजी से किया है जहाँ अमर्यादित भाषा, सम्बन्धो का नग्न धडंग दिखाया जाना आम बात है । पहले तो ये किसी एक प्लेटफार्म पर दिखेगी फिर इसके पश्चात् इसका आदान प्रदान विभिन्न प्लेटफार्म पर मुक्तरूप से आपको दिखेगा । राजनीति भी ऐसे युवाओं को ज्यादे पसंद करती है जो पार्टी की चुनावी रैलियों में आयें न की उन लोगों को जो पढ़ कर रोजगार के लिए धरने पर बैठे ।
किसी भी संस्कृति सभ्यता का विरोध करना उचित नहीं है या किसी को इसे अपनाने या न अपनाने पर किसी अनुमति/प्रतिबन्ध की आवश्यकता है । यह एक व्यक्तिगत विषय हो सकता है परन्तु जब एक बड़ा वर्ग इस तरह की विचारधारा में अन्धकार की तरफ बढ़ रहा हो तो स्वयं विचार करने की जरूरत है की अव्यवस्था बुराई किसी एक विषय के नाम पर कैसे करने दिया जाये । प्यार की सच्ची परिभाषा और समझ किसी के प्रति आकर्षण या वासना नहीं हो सकता जिसमे क्षणिक आनंद छिपा हो । प्यार का सच्चा स्वरुप आज की आधुनिक विचार और व्यवहार से कही अधिक दूर है । जिसे समझने के लिए एक उम्र और ज्ञान की जरूरत होती है । जिसका कम से कम युवाओं में आभाव है । अब जरूरत है समाज को सशक्त करने और किसी झूठे प्रेम में पडऩे से रोकने के लिए युवा पीढ़ी को लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करने और उसे प्राप्त करने के लिए प्रेरित करने की । यह तभी संभव हो पायेगा जब की हम अपनी संस्कृति, संस्कार और व्यवहार से उन्हें नियमित एहसास कराते रहें । अन्यथा हम अपने ही देश में विभिन्न विचारों संस्कारों के गुलाम बन कर रह जायेगे ।