वीरेन्द्र पाठक।
इसबार श्यामा चरण गुप्ता का मंत्रीमण्डल में शामिल होना तय था। किन्तु अन्तिम समय में नितीश के दबाव और कुर्मी वोटर का ध्यान रखते हुए अनुप्रिया पटेल को इन कर पटेलो के सम्मान का संदेश देने का प्रयास किया गया। कुर्मी पटेल वोट को ठीक से गोलबन्द करने का प्रयास नितीश के तीर कर रहे हैं । यह बड़ी चिन्ता है भाजपाई रणनीतिकारो की। केशव मौर्या के मेहनत कर रहें है लेकिन बोझ बड़ा है।
भाजपा के विरोधी दोहरी नीति पर चल रहे है। एक तो वह अपना वोट बैंक बढ़ाने मे लगे है और दूसरा कैसे भाजपा की गणित गड़बड़ायी जाय। जिससे चुनाव परिणाम आने के बाद एक अलग गोल बनाकर भाजपा के खिलाफ खड़े हो सके। भाजपा रणनीति के तहत विपक्ष को राजनीतिक शून्यता तक ले जा रही है। यूपी में अगर उसे लोकसभा वाला समर्थन नही मिला तो यह सम्भव नही है। वाराणसी से लेकर इटावा के पहले कुर्मी अच्छे खासे मतदाता हैं ।अनुप्रिया पटेल की साख भी अब दाँव पर है।
शाक्य मौर्या कुशवाहा आदि के वोटों के लिए दो दावेदार स्वामी प्रसाद और केशव मौर्या है । कश्यप निषादराज केवट भी इन्हीं के बराबर है इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इलाहाबाद में रैली मे निषादराज की धरती कहकर उन्हें अपने से जोड़ा। न कि रिशी भारद्वाज की धरती कहा। जातिगत मोहरो में शायद इसकी जरूरत ही नहीं । क्योंकि भाजपा को शापकीपर यानि बनियो की पार्टी बोलते रहे ।पण्डितो बाबूसाहब और सवर्णो का वोट बैक आधार रहा है। लेकिन अगर नेतृत्व नही बदलेगे तो जनाधार नही बढ़ेगा। अब सबको मंत्री तो बना नही सकते इसलिए किसी को संगठन में किसी को कहीं और स्थान दिया।
मजे की बात है अखिलेश बोल्ड निर्णय लेकर दमदारी दिखा रहे हैं और जैसे जैसे चुनाव आ रहा है चुनावी गणित गड़बड़ायी रही है।
एक बात तो साफ है कि लोग चाहे जितना जातिवादी न होने की बात करें अप्रत्यक्ष में यूपी कीराजनीति में जोर शोर से जातिवादी मोहरे आगे बढ़ाये जा रहे है ।
इसबार के चुनाव में अन्तिम समय तक तस्वीर शायद ही स्पष्ट हो – प्रदेश सरकार से और केंद्र सरकार से इलाहाबाद परिक्षेत्र से मंत्रीमण्डल मे कोयी प्रतिनिधि नही है। कांग्रेस परिवार ने अन्तिम शक्ति के रूप में प्रियंका को रायबरेली अमेठी से आगे ले जाने का निर्णय कर चुकी है। इसका आगाज़ इलाहाबाद से होना है। बस मौके की तालाश है। कई साल पहले अचानक अमेठी से राहुल जीजाजी के साथ इलाहाबाद स्वराज भवन आये थे। मैंने राबर्ड से प्रियंका के बारे में पूछा था कि कब राजनीति में आयेगी। मुझे वह जवाब आज भी याद है क्योंकि मुझे जवाब चौकाने वाला था प्रियंका भी आयेगी…. हम भी आयेगे… वक्त आने दीजिए ।
सामान्य से हटकर यह बात थी इसलिए आजतक याद है। शायद हल्के फुल्के तरीके से कह दिया हो या निकल गयी हो। खैर कांग्रेस के तीर शक्तिहीन होने से तरकश में बचे अंतिम तीर चलाना मजबूरी है। यह तीर इलाहाबाद से ही छूटेगा।