हाईकोर्ट ने प्रशासन को प्रतिमा विसर्जन के लिए गंगा का विकल्प तलाशने के लिए एक साल का वक्त दिया था। साल भर अफसर सोते रहे। पूजा का समय आते ही लक्ष्मीकुंड, शंकुलधारा पोखरा, मंदाकिनी कुंड, ईश्वरगंगी सहित काशी के पर्यावरण और आस्था से जुड़े 25 से ज्यादा कुंडों को चिन्हिन कर उनमें प्रतिमा विसर्जन का फरमान जारी कर दिया गया। काशी के पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण ये जलाशय भूजल रीचार्ज तो करते ही हैं, काशी की सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों के केंद्र भी हैं। अब प्रतिमा विसर्जन से इनके दूषित होने और जलीय जंतुओं के नष्ट होने का खतरा पैदा हो गया है। साथ ही मूर्तियों की गाद तलहटी में जमा होने पर उनकी भूगर्भ जल रीचार्ज की क्षमता भी नष्ट होने की आशंका पैदा हो गई है। कुंडों और तालाबों के संरक्षण के लिए डेढ़ दशक से आंदोलन चला रहे जनाधिकार एवं स्वापक निषेध अपराध नियंत्रण जांच ब्यूरो के अध्यक्ष एसएन गौड़ का कहना है कि मूर्तियों के विषैले रसायनों से जलीय जीव तो नष्ट हो ही जाएंगे। कुंडों और तालाबों के पटने पर अवैध कब्जे भी होने लगेंगे। पहले से ही इन पर भू माफियाओं की, गिद्ध दृष्टि लगी हुई है। उन्होंने कमिश्नर नितिन रमेण गोकर्ण को पत्र लिखकर इस पर आपत्ति जताई है। राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के सदस्य और पर्यावरणविद प्रो. बीडी त्रिपाठी ने सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद तालाबों, कुंडों में प्रतिमा विसर्जन को अपराध बताया है। उनका कहना है कि ठहरे हुए जल में प्रतिमा विसर्जन से सर्वाधिक प्रदूषण फैलने का खतरा रहता है। लक्ष्मीकुंड में गणेश की प्रतिमा विसर्जन करने वालों ने अपराध किया हैए उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।