डेस्क। भारत के पड़ोस में बसा श्रीलंका 1948 में अंग्रेजों से ही आजाद हुआ था और बीते करीब डेढ़ दशकों में तेजी से ग्रोथ हासिल कर रहा था। लेकिन आज तेजी से ग्रोथ करती वह लंका में बदहाली की आग में जल रही है। सडक़ों पर उतरकर लोग सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं और जरूरी चीजों की किल्लत है। मनमानी कीमतों पर भी जरूरी चीजें नहीं मिल रहीं और सरकार गहरे संकट में दिख रही है। यूं तो श्रीलंका में कई साल से यह संकट चला आ रहा था, लेकिन कोरोना ने उसे और गहरा कर दिया है। श्रीलंका को भले ही 1948 में ही आजादी मिल गई थी, लेकिन पड़ोस के भारत और चीन जैसे देशों के मुकाबले वह ग्रोथ नहीं कर सका। इसकी एक वजह लंबे समय तक चला तमिल संघर्ष भी रहा है। सिंहली बहुल श्रीलंका में 26 सालों तक सिविल वॉर चला, जो 2006 में समाप्त हुआ था। इस युद्ध में देश को बड़ा नुकसान पहुंचा था, लेकिन इससे मुक्त के बाद श्रीलंका की सरकारों ने तेजी से ग्रओथ के प्रयास किए। इसके लिए उन्होंने विदेशी निवेश को आकर्षित किया और शॉर्ट टर्म में इसका असर भी दिखा। अर्थव्यवस्था में तेजी दिखने लगी और प्रति-व्यक्ति जीडीपी तेजी से बढ़ते हुए 2014 में 3,819 डॉलर हो गई, जो 2006 में 1,436 डॉलर ही थी। इस मामले में श्रीलंका फिलीपींस, इंडोनेशिया और यूक्रेन जैसे देशों से आगे निकल गया। इसके चलते श्रीलंका में 16 लाख लोग गरीबी से बाहर निकले, जो वहां की आबादी का 8.5 फीसदी हिस्सा थे। इससे देश में मिडिल क्लास की एक बड़ी आबादी तैयार हुई। 2019 में तो श्रीलंका वल्र्ड बैंक की रैंकिंग में अपर मिडिल-इनकम वाले देशों की सूची में शामिल हो गया। हालांकि उसके पास यह ताज सिर्फ एक साल ही रहा क्योंकि यह ग्रोथ कर्ज की कीमत पर हासिल की गई थी। 2006 से 2012 के दौरान श्रीलंका का कर्ज तीन गुना बढ़ते हुए जीडीपी के 119 फीसदी के बराबर हो गया। इन नीतियों पर 2015 में लगाम लगाई गई। इससे अर्थव्यवस्था में ऊपरी तौर पर स्थिरता भले ही नजर आई, लेकिन कर्ज बढ़ता ही रहा। इसकी वजह यह थी कि इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए श्रीलंका ने बड़े पैमाने पर ऊंची ब्याज दर वाले कर्ज का सहारा लिया था।