प्रमोद भार्गव।
मध्य प्रदेश सरकार ने घोषणा की है कि व्यक्ति का जीवन उल्लास व आनंदमय हो, इस हेतु खुशी मंत्रालय का गठन करेंगे। मंत्रालय का अंतिम नाम अभी सुनिश्चित नहीं है। जीवन-यापन की कठिन होती जा रही आपाधापी में बड़ी संख्या में लोग अवसाद और मनोरोगों की गिरफ्त में आ रहे हैं। लिहाजा व्यक्ति में विकार मुखर हो रहे हैं। इन पर नियंत्रण के लिए यदि कोई संस्थागत ढांचा अस्तित्व में आता है तो निश्चय ही यह स्वागतयोग्य पहल है। लेकिन लोककल्याण से जुड़ी संस्थाएं जिस तरह से नौकरशाही द्वारा बरते जा रहे निरकुंश भ्रष्टाचार की गिरफ्त में हैं, उसी तर्ज पर यदि खुशी मंत्रालय चल पड़ा तो इसके खुशी बांटने का पुनीत कार्य दु:ख का सबब भी बन सकता है।
दुनिया के पांच देश यूएई, वेनेजुएला, इक्वाडोर, स्कॉटलैंड और भूटान में पहले से ही खुशी मंत्रालय हैं। यूएई में इसकी जिम्मेदारी महिलाओं के पास है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2012 से विश्व खुशी रिपोर्ट जारी करने की परंपरा भी डाल दी है। इसमें प्रति व्यक्ति सकल घरेलू आय, सामाजिक समर्थन, स्वस्थ जीवन, स्वतंत्रता, उदारता और शासन-प्रशासन पर व्यक्ति का भरोसा जैसे छह बिंदुओं पर 156 देशों में सर्वेक्षण कराया जाता है। बाद में इस सर्वे के अध्ययन के बाद रिपोर्ट जारी की जाती है। खुशी का स्तर मापने के इस सर्वे में भारत का स्थान 118वें क्रमांक पर है। पाकिस्तान और बांग्लादेश भारत से कहीं ज्यादा खुशहाल देश हैं। डेनमार्क में खुशी मंत्रालय नहीं है, बावजूद वह खुशहाल देशों के पहले पायदान पर है। इसलिए यह कोई गारंटी नहीं है कि मध्य प्रदेश में खुशी मंत्रालय खुल जाएगा तो वह आनंद से सरोबार हो ही जाएगा। हालांकि दुनिया में बढ़ते तनाव और अवसाद के चलते ही संयुक्त राष्ट्र ने 20 मार्च को ‘खुशी-दिवसÓ घोषित किया हुआ है।
बहरहाल, दु:ख के कारणों का कोई अंत नहीं है। करिअर बनाने की होड़ और वैभव बटोरने की जिद ने इसे सघन व जटिल बना दिया है। अपेक्षाकृत कम ज्ञानी व उत्साही व्यक्ति में भी विज्ञापनों के जरिए ऐसी महत्वाकांक्षाएं जगाई जा रही हैं, जिन्हें पाना उसके वश की बात नहीं है। फिर सरकारी नौकरी हो या निजी कंपनियों की नौकरी, उनमें रिक्त पदों की एक सीमा सुनिश्चित होती है, उससे ज्यादा भर्ती संभव नहीं होती। ऐसे में एक-दो नबंर से चयन प्रक्रिया से बाहर हुआ अभ्यर्थी भी अपने को अयोग्य व हतभागी समझने की भूल कर बैठता है और कुंठा व अवसाद की गिरफ्त में आकर मौत को गले लगाने के उपाय ढूंढऩे लग जाता है। ऐसे में परिवार से दूरी और एकाकीपन व्यक्ति को मौत के मुंह में धकेलने का काम आसानी से कर डालते हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का मानना है कि ध्यान, योग, प्राणायाम और चिंतन से निराश जीवन को खुशहाली में ढालने के प्रयास होंगे। ऋषि-मुनियों ने ज्ञान-परंपरा के अनुभव से हजारों साल पहले ही जान लिया था कि आवश्यकताएं सीमित हैं, जबकि इच्छाएं अनंत हैं। इसीलिए हमारे ऋषियों ने ‘संतोषÓ को व्यक्ति का सबसे बड़ा ‘धनÓ माना है। यही संतोष अचेतन में घुमड़ रहे असंतोष का परिष्कार व शमन करने का प्रमुख माध्यम है।
दरअसल, बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अपने उत्पादों को खपाने के लिए उपभोक्तावाद को जिस तरह से बढ़ावा दिया है, उसमें धर्म, दर्शन और विज्ञान के अर्थ संकीर्ण बना दिए गए हैं। दर्शन पर बौद्धिक विमर्श तो होते हैं किंतु इनकी व्यावहारिक उपयोगिता के उपाय सामने नहीं आ पा रहे हैं। सनातन धर्म अध्यात्म और विज्ञान का अद्भुत समन्वय है, जिसे आधुनिक वैज्ञानिक संदर्भों में कम ही परिभाषित किया जा रहा है।
मानव-शरीर सरंचना के परिप्रेक्ष्य में विज्ञान की पहुंच केवल अस्थि-मज्जा के जोड़ और जैविक रसायनों के घोल तक सीमित है। जबकि मानव शरीर महज जैविक रसायनों का संगठन भर नहीं है, बल्कि उसकी अपनी मनोवैज्ञानिक एवं उससे भी इतर आध्यात्मिक सत्ता भी है जो मानसिक स्तर पर मानवीय चेतना एवं व्यक्तित्व विकास का प्रमुख आधार तत्व है।
हमारे मनीषियों ने जीवन को आनंदमय बनाए रखने के लिए उत्सवधर्मिता से जोड़ा था। इसलिए हमारी भारतीय जीवनशैली में उत्सव हर जगह मौजूद था। पारंपरिक उत्सव जहां व्यक्ति को समूह से जोड़ते थे, वहीं जीवन में उत्साह भरने का काम भी करते थे। किंतु आज पाश्चात्य जीवनशैली के प्रभाव ने हमारे भीतर की उत्सवधर्मिता को कमोबेश कमजोर कर दिया है। इसके प्रमुख कारणों में एक समाज में सामुदायिक उपलब्धि की बजाय व्यक्तिगत उपलब्धि को महत्व देना रहा है।
इस कारण उत्सवों के समय व्यक्तियों को परस्पर घुल-मिलकर एकाकार होने के जो अवसर मिलते थे, वे लगभग समाप्त हो गए हैं। कालांतर में यदि खुशी मंत्रालय व्यक्ति में भीतरी ऊर्जा जाग्रत करने में सार्थक होता है तो हताश व्यक्तियों के जीवन के लिए यह ऊर्जा की किरण संजीवनी सिद्ध होगी। बस यहां ख्याल यह रखना होगा कि व्यक्ति में बैठे अंधेरे को उजाले में बदलने की यह विचित्र पहल सरकार की लोककल्याणकारी योजना बनकर न रह जाए।